घरवालों ने बचपन में ही छोड़ दिया था साथ, खुद के बूते पढ़कर पहले प्रयास में ही बनी IAS अफ़सर
उम्मुल खेर जैसी लड़की को जितनी बार सलाम किया जाए, उतना ही कम है. ऐसी बहादुर लड़की समाज में बहुत कम मिलती है। एक ऐसी लड़की जो विकलांग पैदा हुई और इस विकलांगता को अपनी ताकत बनाते हुए सफलता की सीढ़ियां चढ़ती चली गई।
उम्मुल के पिता सड़क किनारे फुटपाथ पर मूंगफली बेचा करते थे। साल 2001 में झुग्गियां टूटने के बाद उन्होंने त्रिलोकपुरी इलाके में एक कमरा किराये पर लिया। उम्मुल को बचपन में ही इस बात की समझ हो चुकी थी कि यदि जिंदगी को बेहतर बनाना है तो इसके लिए शिक्षा बेहद महत्वपूर्ण है। उम्मुल के परिवार के लोग नहीं चाहते थे कि उम्मुल आगे पढ़ाई करे लेकिन उम्मुल अपना पढ़ाई जारी रखना चाहती थी।
जब मां का हो गया देहांत
कुछ समय बाद उम्मुल की माँ का देहांत हो गया। माँ उनके लिए एकमात्र सहारा थी जो हर परिस्थिति में बेटी का साथ देती थी। घर में सौतेली माँ आई तो उनके साथ उसका रिश्ता बेहतर नहीं रहा, और अंत में उम्मुल को घर छोड़ने पर विवश होना पड़ा। उन्होंने एक किराये की मकान ली और विषम आर्थिक परिस्थिति में भी ट्यूशन पढ़ाकर अपना खर्च चलाया।
शुरुआत में विकलांग बच्चों की स्कूल में हुई पढ़ाई
उम्मुल पांचवीं तक की पढ़ाई आईटीओ में बने एक दिव्यांग स्कूल में हासिल की। उसके बाद आठवीं तक कड़कड़डूमा के अमर ज्योति चैरिटेबल ट्रस्ट में पढ़ाई की। आठवीं की परीक्षा वो अव्वल नंबर से पास की और फिर उन्हें स्कॉलरशिप का लाभ मिला। स्कॉलरशिप की बदौलत उन्हें एक प्राइवेट स्कूल में पढ़ने का मौका मिला। दसवीं में 91 फीसदी और 12वीं 90 फीसदी अंक हासिल करने के बाद उम्मुल दिल्ली यूनिवर्सिटी के गार्गी कॉलेज में साइकोलॉजी से ग्रेजुएशन किया। इस दौरान भी उन्होंने अपने ट्यूशन पढ़ाने के क्रिया-कलाप को जारी रखा।
आगे की पढ़ाई के लिए वो प्रतिष्ठित जवाहरलाल नेहरु यूनिवर्सिटी का रुख की और मास्टर डिग्री हासिल करने के बाद वहीं एमफिल में एडमिशन ले लिया। अपनी रेगुलर पढ़ाई में वो इतना व्यस्त हो गईं कि उन्हें उनके आईएएस बनने के सपने को साकार करने के लिए वक्त ही नहीं मिल रहा था। पिछले साल जनवरी में उन्होंने यूपीएसी के लिए तैयारी शुरू की और अपनी पहली कोशिश में ही 420वां रैंक हासिल करने में सफल रहीं।
अपना माता-पिता को हर सुविधाएँ देना चाहती हैं उम्मुल
एक वक़्त पर जिस परिवार ने उम्मुल से उसका साथ छोड़ दिया था, आज उस परिवार की गलतियों को वो माफ़ कर चुकी हैं। उम्मुल का कहना है कि वह अपने माता-पिता का बहुत सम्मान करती है और अब वह उन्हें हर तरह का आराम देना चाहती है जोकि उनका हक है।
गरीबी और विकलांगता को मात देकर बेमिसाल सफलता का उदाहरण पेश करने वाली इस बहादुर लड़की के जज़्बे को जितनी बार सलाम किया जाए, कम है।
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